कालिदास प्राचीन भारत में संस्कृत भाषा के उच्च-कोटि के कवि और नाटककार थे। आधुनिक विद्वानों ने तो उन्हें राष्ट्रीय कवि तक का स्थान दिया है।
महाकवि कालिदास के नाम का शाब्दिक अर्थ ‘काली का सेवक’ है और वो काली मां के अनन्य भक्त थे।
वर्तमान समय में लगभग 40 ऐसी रचनाएँ हैं जिन्हें कालिदास के नाम से जोड़ा जाता है। लेकिन इनमें से केवल सात ही निर्विवाद रूप से महाकवि कालिदास द्वारा रचित मानी जाती हैं। इन सात में से तीन नाटक, दो महाकाव्य और दो खण्डकाव्य हैं।
महाकवि कालिदास की सात रचनाओं और उनके जीवन के बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है-
1. कालिदास किस काल में हुए, इस बारे में विवाद है
हमारे पास इस बात का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है कि कालिदास प्राचीन भारत में किस समय में हुए थे। विभिन्न इतिहासकारों के इस बारे में अलग-अलग मत हैं। लेकिन दो मत काफी लोकप्रिय हैं। पहला मत पहली सदी ईसा पूर्व का है जबकि दूसरा चौथी सदी ईसवी का।
पहली सदी ईसा पूर्व यानि कि आज से 2100 साल पहले के मत के अनुसार कालिदास उज्जैन के विख्यात राजा विक्रमादित्य के समकालीन थे और उनके राज-दरबार में कवि के पद पर नियुक्त थे। महाकवि कालिदास को महाराज विक्रमादित्य के नौ रत्नों में से एक थे।
चौथी सदी ईसवी के मत के अनुसार कालिदास भारत का स्वर्ण युग कहे जाने वाले गुप्त काल में गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय और उनके उत्तराधिकारी कुमारगुप्त के समकालीन थे। कई प्रमुख इतिहासकार इसी मत को ज्यादा महत्व देते हैं।
2. कालिदास के जन्म-स्थान के बारे में विवाद है
महाकवि कालिदास के जन्म काल की तरह उनके जन्मस्थान के बारे में भी विवाद है। उन्होंने अपने खण्डकाव्य मेघदूत में मध्यप्रदेश के उज्जैन का काफी महत्ता से वर्णन किया है जिसकी वजह से कई इतिहासकार उन्हें उज्जैन का निवासी मानते हैं।
कुछ साहित्यकारों ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि कालिदास का जन्म कविल्ठा गांव में हुआ था जो आज के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। कविल्ठा गांव में सरकार द्वारा कालिदास की एक प्रतिमा स्थापित की गई है और एक सभागार का निर्माण भी करवाया गया है। इस सभागार में हर वर्ष जून के महीने में तीन दिनों की एक साहित्यक गोष्ठी का आयोजन होता है, जिसमें भाग लेने देश के कोने-कोने से विद्वान आते हैं।
3. पत्नी ने धिक्कारा तो बने पंडित
किवदंतियों के अनुसार कालिदास दिखने में तो सुंदर थे लेकिन आरंभ में वो अनपढ़ और मूर्ख थे। उनका विवाह संयोग से विद्योत्तमा नाम की राजकुमारी से हुआ था।
हुआ यूं कि विद्योत्तमा ने यह तय कर रखा था कि जो पुरूष उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा, वो उससे विवाह कर लेगी। लेकिन बड़े-बड़े विद्वान विद्योत्तमा को शास्त्रार्थ में नहीं हरा सके क्योंकि विद्योत्तमा चुप रहकर इशारों से गूढ़ प्रश्न पूछती थी जिसका उत्तर इशारों में ही देना होता था।
कोई विद्वान विद्योत्तमा के इन गूढ़ प्रश्नों का उत्तर ना दे पाया तो कुछ दुखी विद्वानों ने थक हार के मूर्ख और अनपढ़ कालिदास को आगे कर दिया, जिसने विद्योत्तमा के इशारों में पूछे गए सवालों के जवाब इशारों में ही देने शुरू कर दिए।
विद्योत्तमा को लग रहा था कि कालिदास इशारों से उनके गूढ़ प्रश्नों के गूढ़ उत्तर दे रहे हैं। लेकिन उनकी सोच गलत थी। जैसे कि जब विद्योत्तमा ने कालिदास को खुला हाथ दिखाया, तो मूर्ख कालिदास को लगा कि वो उसे थप्पड़ दिखा रही है, तो उसने भी विद्योत्तमा को घूंसा दिखा दिया। लेकिन विद्योत्तमा को लगा कि कालिदास शायद यह कह रहे हैं कि पांचो इंद्रियां भले ही अलग हों, लेकिन वो सभी एक ही मन द्वारा संचालित हैं।
विद्योत्तमा और कालिदास का विवाह हो जाता है। विवाह के बाद विद्योत्तमा को सच्चाई पता चलती है कि कालिदास मूर्ख और अनपढ़ है। वो कालिदास को धिक्कार कर घर से बाहर निकाल देती और कहती है कि बिना पंडित बने घर वापिस मत आना।
कालिदास को ग्लानि महसूस होती है और वो सच्चा पंडित बनने की ठान लेते हैं। वो काली मां की सच्चे मन से आराधना करनी शुरू कर देते हैं और मां के आशीर्वाद से वो परम ज्ञानी बन जाता है। घर लौट कर जब वो दरवाज़ा खड़का कर अपनी पत्नी को आवाज़ लगाता है तो विद्योत्तमा आवाज़ से ही पहचान जाती है कि कोई विद्वान व्यक्ति आया है।
इस तरह से पत्नी के धिक्कारने पर एक मूर्ख और अनपढ़ महाकवि बन जाता है। कालिदास जीवनभर अपनी पत्नी को अपना पथ प्रदर्शक गुरू मानते रहे।
4. कालिदास की रचनाएँ
जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया था कि सात ऐसी रचनाएँ हैं जिन्हें निर्विवाद रूप से कालिदास रचित माना जाता है। इन सात में से तीन नाटक हैं – अभिज्ञान शाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम् और मालविकाग्निमित्रम्; दो महाकाव्य हैं- रघुवंशम् और कुमारसंभवम्; और दो खंण्डकाव्य हैं- मेघदूत और ऋतुसंहार। इन सभी का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-
अभिज्ञान शाकुन्तलम् – यह नाटक महाभारत के आदिपर्व के शकुन्तलोपाख्यान पर आधारित है जिसमें राजा दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम-कथा का वर्णन है। इस नाटक के कुल 7 अंक हैं। अभिज्ञान शाकुन्तलम् ही वो रचना है जो कालिदास की जगतप्रसिद्धि का कारण बना। 1791 में जब इस नाटक का अनुवाद जर्मन भाषा में हुआ, तो उसे पढ़कर जर्मन विद्वान गेटे इतने गदगद हुए कि उन्होंने इस नाटक की प्रशंसा में एक कविता लिख डाली।
विक्रमोर्वशीयम् – यह एक रोमांचक नाटक है। इसमें स्वर्ग में रहने वाले पूरूरवा अप्सरा उर्वशी के प्यार में पड़ जाते हैं। उर्वशी भी उनके प्यार में पड़ जाती है। इंद्र की सभा में जब उर्वशी नृत्य करने के लिए जाती है तो पूरूरवा से प्रेम के कारण वो वहां पर अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती जिसकी वजह से इंद्र देव उसे श्राप देकर धरती पर भेज देते हैं। लेकिन अगर उसका प्रेमी उसके होने वाली संतान को देख ले, तो वो वापिस स्वर्ग लौट सकती है।
मालविकाग्निमित्रम् – मालविकाग्निमित्रम् में राजा अग्निमित्र की कहानी है जिसमें वो घर से निकाले गए एक नौकर की बेटी मालविका के चित्र से प्यार करने लगता है। काफी उतार-चढ़ाव और मुसीबतों के बाद अग्निमित्र और मालविका का मिलन हो जाता है।
रघुवंशम् – रघुवंशम् महाकाव्य में रघुकुल वंश के राजाओं का वर्णन किया गया है। भगवान राम रघुकुल वंश से ही थे। इसमें बताया गया है कि दिलीप रघुकुल के प्रथम राजा थे। दिलीप के पुत्र रघु, रघु के पुत्र अज, अज के पुत्र दशरथ और दशरथ के भगवान राम समेत चार पुत्र थे।
कुमारसंभवम् – कुमारसंभवम् में शिव-पार्वती की प्रेमकथा और उनके पुत्र कार्तिकेय के जन्म की कहानी है। कई विद्वानों का मानना है कि कालिदास की मूल रचना में केवल शिव-पार्वती की प्रेमकथा ही शामिल थी जबकि कार्तिकेय के जन्म की कहानी बाद के किसी और कवि द्वारा जोड़ी गई है।
मेघदूत – मेघदूत में एक साल के लिए नगर से निष्कासित एक सेवक जिसका नाम यक्ष होता है, को अपनी पत्नी की याद सताती है और वो मेघ यानि कि बादल से प्रार्थना करता है कि वो उसका संदेश उसकी पत्नी तक लेकर जाए।
ऋतुसंहार – यह ऐसा खण्डकाव्य है जिसे कई विद्वान कालिदास की रचना मानते ही नहीं। इसमें राजा विक्रमादित्य का वर्णन है। इसके सिवाए यह संस्कृत साहित्य की पहली ऐसी रचना है जिसमें भारतवर्ष की सभी ऋतुओं का वर्णन क्रम अनुसार किया गया है।
5. अन्य रचनाएँ जिनका श्रेय कालिदास को दिया जाता है
प्रमुख सात रचनाओं के सिवाए, 33 ऐसी रचनाएँ और हैं जिनका श्रेय महाकवि कालिदास को दिया जाता है। लेकिन कई विद्वानों का मानना है कि यह रचनाएँ अन्य कवियों ने कालिदास के नाम से की थी।
कवि और नाटककार के अलावा कालिदास को ज्योतिष का विशेषज्ञ भी माना गया है। माना जाता है कि ज्योतिष पर आधारित पुस्तक उत्तर कालामृतम् कालिदास की ही रचना है।
6. कालिदास की साहित्यिक प्रतिभा की विशेषता
कालिदास कितने प्रतिभाशाली कवि थे इस बात का पता इसी से लगता है कि उनके बाद हुए एक और प्रसिद्ध कवि बाणभट्ट ने उनकी खूब प्रशंसा की है। यहां तक के दक्षिण के शक्तिशाली चालुक्य सम्राट पुलकेशिन द्वितीय के 634 ईसवी के एक शिलालेख में कालिदास को महान कवि का दर्जा दिया गया है।
अपने समय के एक शक्तिशाली राजा के शिलालेख में एक कवि का वर्णन होना कोई छोटी बात नहीं है। यह शिलालेख कर्नाटक राज्य में बीजापुर के एक प्राचीन स्थान एहोल में पाया गया था।
कालिदास अपनी रचनाओं में अलंकार युक्त सरल और मधुर भाषा का प्रयोग करते थे। इसके सिवाए उनके द्वारा ऋतुओं का किया गया वर्णन बेमिसाल है।
संगीत कालिदास के साहित्य का प्रमुख अंग रहा, लेकिन वो अपनी रचनाओं में आदर्शवादी परंपरा और नैतिक मूल्यों का भी ध्यान रखते थे।
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Note – अगर आपको कालिदास / Kalidas in Hindi की जीवनी, इतिहास, रचनाओं या किसी और चीज़ के बारे में जानकारी चाहिए, तो आप comments के माध्यम से पूछ सकते हैं।
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