श्रीनगर शहर की स्थापना किसने की थी? History of Srinagar in Hindi

Srinagar in Hindi

श्रीनगर भारत के जम्मू और कश्मीर राज्य का सबसे बड़ा शहर होने के साथ-साथ राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी है। ये शहर जेहलम नदी के किनारे पर बसा हुआ है, जो कि सिंधु नदी की एक सहायक नदी है। ये शहर अपनी प्राकृतिक सुंदरता के कारण अत्याधिक प्रसिद्ध है। ये उत्तर में बसा भारत का एक बड़ा शहर है जिसकी आबादी 11 लाख से ज्यादा है।

12वीं सदी में कल्हण द्वारा लिखी गई राजतरंगिणी में हमें श्रीनगर का वर्णन मिलता है। इसके सिवाए चीन के कई प्राचीन दस्तावेज़ भी श्रीनगर का वर्णन करते हैं। श्रीनगर का शाब्दिक अर्थ ‘सूर्य का नगर’ माना जाता है। इसके सिवाए इसके नाम से ये भी अर्थ निकाला गया है कि इस नाम का मतलब ‘धन का शहर’ है।

श्रीनगर शहर की स्थापना किसने की थी?

कल्हण के अनुसार श्रीनगर की स्थापना 1182 ईसापूर्व में यानि कि आज से 3200 साल पहले अशोक नाम के राजा ने की थी। लेकिन कई इतिहासकार इस अशोक राजा को 2300 साल पहले वाला मौर्य साम्राज्य का महान सम्राट अशोक ही मानते हैं।

राजतरंगिणी में कल्हण ने ये भी लिखा है कि प्रवरसेन दूसरे नाम के एक राजा ने प्रवरपुरा शहर की स्थापना करके उसे अपनी राजधानी बनाया था। स्थलाकृतिक विवरणों से पता चलता है कि ये ‘प्रवरपुरा’ आज का श्रीनगर ही है।

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कल्हण ये भी लिखता है कि प्रवरसेन दूसरे की राजदानी प्रवरपुरा से पहले पुराणाधिष्ठाना थी। माना जाता है कि ये पुराणाधिष्ठाना पंद्रेथान है जो कि आज के श्रीनगर से लगभग 10 किलोमीटर दूर स्थित था। इतिहासकार वी.ए. स्मिथ पंद्रेथान को पुराना श्रीनगर शहर मानते है जो कि प्रवरसेन दूसरे ने दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया था।

14वीं सदी से 18वीं सदी तक का श्रीनगर

14वीं सदी तक श्रीनगर पर किसी ना किसी हिंदू या बौद्ध राजा का शासन रहा लेकिन इसके बाद ये मुस्लिम शासकों के प्रभाव के अधीन आने लगा। 1586 ईस्वी में अकबर ने पूरे कश्मीर पर कब्ज़ा कर लिया और श्रीनगर भी मुगल साम्राज्य के अधीन आ गया।

1707 में जब औरंगज़ेब की मौत के बाद मुगल साम्राज्य का पतन होने लगा तो श्रीनगर पर अफगानों और डोगरों के हमले होने लगे। दोनों ने कुछ दशकों तक श्रीनगर पर राज किया।

आधुनिक काल

जब पंजाब में सिखों का दबदबा बढ़ने लगा, तो वो जम्मू और कश्मीर तक भी पहुँच गए। 1814 में महाराजा रणजीत सिंह ने श्रीनगर से अफगान राज को उखाड़ फेंका और ये शहर सिख साम्राज्य के अधीन आ गया। अगले 30 सालों तक इस शहर पर सिखों का राज रहा।

महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद जब पहले अंग्रेज़-सिख युद्ध में सिख हार गए तो दोनों में लाहौर की संधि हुई। संधि में श्रीनगर सिखों से जाता रहा और अंग्रेज़ों ने इसे हिंदू डोगर राजा महाराजा गुलाब सिंह को सौंप दिया जो अंग्रेजों के अधीन थे। आज़ादी तक श्रीनगर पर इसी हिंदु डोगर वंश का राज रहा।

स्वतंत्रता के पश्चात श्रीनगर

भारत की आज़ादी के पश्चात जम्मू और कश्मीर एक स्वतंत्र राज्य था। अंग्रेज़ों के नियम के अनुसार कोई भी रियासत भारत से स्वतंत्र रह सकती थी। इसलिए इसके राजा हरी सिंह ने स्वतंत्र रहने की सोची। लेकिन पाकिस्तान और कुछ मुस्लिम कबीलों ने इनके राज्य पर हमला कर दिया। कई हिंदुओं को मार-काट दिया गया और महिलाओं से जो बर्बरता की उन्हें शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।

अपना सारा राज जाता देख महाराज हरी सिंह भारत में शामिल होने के लिए राजी हो गए। सरदार पटेल ने भारतीय फौजों को रवाना किया। पाकिस्तान और मुस्लिमों कबीलों ने कश्मीर के बड़े हिस्सा पर कब्ज़ा जमा लिया था। भारतीय फौज़ ने कब्जाए गए बड़े हिस्से से पाकिस्तानी फौज़ को खदेड़ डाला।

भारतीय फौज़ पूरा कश्मीर खाली करवाने ही वाली थी कि अचानक नेहरू ने बीच में अडंगा अड़ा दिया और मामला संयुक्त राष्ट्र में चला गया। और अब तक ये मामला अधर में ही लटका हुआ पड़ा है। अगर उस समय सरदार पटेल की चलती, तो इस बात की नौबत ही नहीं आती।

श्रीनगर भारत के नवगठित जम्मू और कश्मीर राज की राजधानी बना। लेकिन यहां पर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद बढ़ता ही गया। यहां तक कि 1989 से कश्मीरी हिंदुओं के घरों के बाहर ये पर्चे लगा दिए गए, कि हमें कश्मीर चाहिए, बिना हिंदुओं के, उनकी औरतों के साथ। इसके बाद 19 जनवरी 1992 को लगभग 5 लाख कश्मीरी हिंदुओं को कश्मीर से खदेड़ दिया गया। लगभग 20 हज़ार हिंदुओं को बेदर्दी से कत्ल कर दिया गया। महिलाओं के सामूहिक बालात्कार के बाद उन्हें जिंदा जला दिया गया। तब से अब तक श्रीनगर में महज़ कुछ ही हिंदु परिवार बचे हैं।


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