चन्द्रगुप्त प्रथम गुप्त वंश के प्रथम प्रसिद्ध शासक थे। उन्होंने अपने दादा श्रीगुप्त और पिता घटोत्कच द्वारा मिली छोटी सी जागीर को एक साम्राज्य में तब्दील किया। ये साम्राज्य आगे चलकर भारत के सबसे बड़े और प्रभावी साम्राज्यों में से एक बना।
नीचे सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम से जुड़े सभी महत्वपूर्ण तथ्य दिए गए हैं जो आपको उनके बारे में जानने में सहायता करेंगे-
चन्द्रगुप्त प्रथम का इतिहास – Chandragupta 1 history in Hindi
1. ऐतिहासिक अभिलेखों में श्रीगुप्त और घटोत्कच को केवल ‘महाराज’ कहा गया है जबकि चन्द्रगुप्त प्रथम को ‘महाराजाधिराज’ कहा गया है। महाराजाधिराज का अर्थ होता है – ‘राजाओं का राजा’। ये उपाधि उन्हें अपनी विजयों के फलस्वरूप प्राप्त हुई होगी या फिर उन्होंने स्वयं ग्रहण की होगी।
2. चन्द्रगुप्त प्रथम के लिच्छवि की राजकुमारी से विवाह को बहुत महत्व दिया गया है। लिच्छवि नेपाल का एक राज्य था। उन्होंने 308 ईसवी में लिच्छवि की राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया था जिससे उनके राज्य की प्रसिद्धी और बल दोनो बढ़ गए थे।
3. चन्द्रगुप्त प्रथम के जो सिक्के हमें प्राप्त हुए हैं, उनसे पता चलता है कि लिच्छवियों को चन्द्रगुप्त प्रथम और कुमारदेवी के कारण चन्द्रगुप्त प्रथम की प्रभुता में भागीदार बताया गया है। इससे अनुमान लगाया गया है कि अपने ससुराल की सहायता से चन्द्रगुप्त प्रथम को अपने राज्य को साम्राज्य बनाने में सहायता मिली अवश्य मिली होगी। ऊपर जो सिक्कों की तसवीर है उनमें एक तरफ चन्द्रगुप्त प्रथम और कुमारदेवी को दिखाया गया है और दूसरी तरफ माता दुर्गा की तस्वीर के साथ लिच्छवियों का नाम लिखा है।
4. ये दुर्भाग्य ही है कि हमें चन्द्रगुप्त प्रथम की विजयों का कोई स्पष्ट विवरण नहीं मिलता है। उनके साम्राज्य की असल सीमाओं की हमें कोई जानकारी नहीं है। वायुपुराण में प्रयाग तक के गंगा के तटवर्ती प्रदेश, साकेत तथा मगध को गुप्तों की ‘भोगभूमि’ कहा है। इस उल्लेख के आधार पर विद्वान् चंद्रगुप्त प्रथम की राज्यसीमा का निर्धारण करते हैं, यद्यपि इस बात का कोई पुष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
5. चन्द्रगुप्त प्रथम ने अपने राजतिलक के समय ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण करते ही गुप्त संवत् की शुरूआत भी की थी। संवत् का अर्थ होता है – कैलंडर।
6. गुप्त संवत् की शुरूआत 319-320 ईस्वी में होती है। इस बात का पता अंग्रेज़ विद्वान डॉक्टर फलीट ने लगाया था। उन्होंने ये खोज़ अलबरूनी के वर्णन पर आधारित की थी कि गुप्त संवत् और शक संवत् में 241 साल का अंतर है। चूंकि उस समय ये स्पष्ट जानकारी थी कि शक संवत् 78 ईसवी में आरंभ होता है, इसलिए गुप्त संवत् संभवता (78+241) 319-320 ईस्वी में प्रारंभ हुआ होगा।
7. डॉक्टर फलीट द्वारा की गई खोज़ बहुत महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसे सभी प्रमुख विद्वान सही मान चुके हैं। इससे उन घटनाओं और काल-क्रमों को तय करने में सहायता मिली है जो कि गुप्त संवत् के अनुसार अभिलेखों में दर्ज हैं।
8. चन्द्रगुप्त प्रथम ने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण करने के बाद यानि कि 319-320 ईसवी से लगभग 335 ईसवी तक राज किया और उनके बाद उन्होंने राजगद्दी अपने पुत्र समुद्रगुप्त को सौंप दी जो आगे चलकर एक महान शासक बने।
9. एक नई खोज़ के अनुसार चन्द्रगुप्त प्रथम के बाद उसके एक पुत्र कच्छगुप्त ने थोड़े समय के लिए राज किया था। 335 ईसवी के थोड़े बहुत सिक्के कच्छगुप्त के नाम के मिले है। ये कहा जा सकता है कि समुद्रगुप्त अपने बड़े भाई की अचानक मृत्यु के बाद सम्राट बन गया या फिर उसने सत्ता हासिल करने के लिए अपने भाई से संघर्ष किया। कच्छगुप्त से भी संबंधित कई धारानाएं हैं।
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Note : ये लेख गुप्त राजवंश के सम्राट चन्द्रगुप्त प्रथम के बारे में था। अगर आपको किसी और शासक की जानकारी चाहिए, तो नीचे comments के बाद दिए search box में खोज सकते हैं, या फिर comment करके पूछ सकते हैं। धन्यवाद।
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