प्राचीन भारत की यात्रा करने वाले 5 प्रसिद्ध विदेशी यात्री

प्राचीन समय में बहुत से विद्वान ऐसे थे जो दुनिया भर का ज्ञान हासिल करना चाहते थे। लेकिन आज की तरह सारा ज्ञान इंटरनेट जैसी एक जगह पर मौजूद ना होने के कारण उन विद्वानों को दुनिया भर में घूम-घूम कर चीज़ों की जानकारी हासिल करनी पड़ती थी।

ज्ञान हासिल करने की चाह रखने वाले प्राचीन विद्वान भारत आने की चाह जरूर रखते थे और कई ऐसे थे जो भारत आए और यहां का कई तरह का सामाजिक और शैक्षणिक ज्ञान हासिल किया। इन विद्वान यात्रियों ने जो ज्ञान हासिल किया था उसे उन्होंने लिखित रूप में भी सहेज कर रखा और उन्हीं के लिखे हुए दस्तावेज़ और विवरण भारत के प्राचीन इतिहास को जानने में हमारी सबसे ज्यादा सहायता करते हैं।

यहां हम आपको प्राचीन भारत की यात्रा करने वाले 5 प्रसिद्ध यात्रियों के बारे में बताने जा रहे हैं-

1. मेगस्थनीज – Megasthenes (302 से 298 ईसापूर्व)

मेगस्थनीज सेल्युकस के राजदूत के रूप में महाराज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था। वो एक इतिहासकार और विद्वान था जो कि अपनी इंडिका नामक पुस्तक में अपने समय के भारत के बारे में काफी कुछ लिखता है। दुर्भाग्य से इस पुस्तक की मूल प्रति अब खो चुकी है, लेकिन बाद के इतिहासकारों के लेखन में हवाले के रूप में उसकी पुस्तक के काफी सारे अंश मिलते है।

माना जाता है कि मेगस्थनीज लगभग 5 साल तक महाराज चंद्रगुप्त के दरबार में राजदूत रहा। उसका जन्म 350 ईसापूर्व में हुआ था और वो लगभग 46 साल की उम्र में भारत आया था। मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र तक पहुँचने के लिए उसे ईरान से काफी लंबा सफर तय करना पड़ा था।

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2. ह्वेन त्सांग – Xuanzang/Hiuen Tsang (629-645 ईस्वी)


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ह्वेन त्सांग या ई-त्सिंग प्राचीन भारत में आने वाले सबसे प्रसिद्ध यात्रियों में से एक हैं। वो चीन के एक बौद्ध भिक्षु थे और भारत में बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्रा करने और बौद्ध धर्म का और ज्ञान हासिल करने के लिए यहां आए थे।

ह्वेन त्सांग ने कश्मीर, पंजाब से होते हुए कपिलवस्तु, बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर आदि बौद्ध-स्थलों की यात्रा की। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय में भी अच्छा खासा समय बिताया और वो दक्कन, उड़ीसा और बंगाल के कई स्थानों पर भी गए थे।

ह्वेन त्सांग हर्षवर्धन के शासन काल में भारत आए और वो लगभग 16 साल तक भारत में रहे। उन्होंने अपने भारत से संबंधित अनुभव अपनी पुस्तक सी-यू-की में लिखे जो उस समय के भारत की सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक अवस्था की महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं।

ई-त्सिंग बताते हैं कि नालन्दा विहार के नियम बहुत कड़े थे। आवासियों की संख्या 3 हज़ार से अधिक थी। इसके अधिकार में 200 से अधिक ग्राम थे जो कई पीढ़ियों के राजाओं ने उसे प्रदान किए थे।

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3. अल बेरुनी – Al-Biruni (1000-1025 ईस्वी)

अल बेरुनी महमूद गज़नवी के भारत पर आक्रमण अभियानों में कई बार उसके साथ आया था। अल बेरुनी बहुत बड़ा विद्वान था जिसने कई तरह के ग्रंथ लिखे थे। माना जाता है कि उसने 146 किताबें लिखी थी जिनमें से 35 खगोलशास्त्र पर, 23 ज्योतिषशास्त्र पर, 15 गणित पर, 16 साहित्यिक और बाकी की अन्य विषयों पर थी।

बेरूनी की लिखी तारीख-अल-हिन्द से उस समय के और उससे पहले के भारत के बारे में काफी सारी जानकारी मिलती है। उसने भारतीयन विद्वानों के साथ अच्छा खासा समय बिताया था। यहां तक कि उसने संस्कृत भाषा को भी सीख लिया था। भारत के सिवाए उसने श्रीलंका की यात्रा भी की थी।

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4. मार्को पोलो – Marco Polo

मार्को पोलो इटली का रहने वाला एक व्यापारी, खोजकर्ता और राजदूत था जिसने दुनिया भर के कई देशों की यात्रा की थी। माना जाता है कि वो दो बार, 1288 और 1292 में दक्षिण भारत आया था।

मार्को पोलो ने अपनी यात्रा 1272 में अपने चाचा के साथ शुरू की थी। उसने सारे के सारे रेशम मार्ग का फासला भी तय किया था। उसका यात्रा वृतांत लंबे समय तक एशिया के बारे में जानाकारी देने वाला युरोपियन लोगों का मुख्य स्रोत रहा था।

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5. इब्न-बतूता – Ibn Battuta (1333-42 ईस्वी)


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इब्न-बतूता को इतिहास के सबसे महान यात्रियों में से एक माना जाता है। उसने भारत ही नहीं बल्कि उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी अफ्रीका, दक्षिणी युरोप, पूर्वी युरोप के सिवाए रूस को छोड़ कर पूरे एशिया की यात्रा की थी। माना जाता है कि उसने 1 लाख 21 हज़ार किलोमीटर की यात्रा की थी और वो अपने समय के हर उस राज्य में गया था जहां किसी मुस्लिम राजा का राज था।

जब इब्न-बतूता भारत आया था तो उस समय उत्तर भारत के एक बड़े हिस्से पर मुहम्मद बिन तुगलक का राज था। तुगलक सुल्तान से उसे बड़े आदर के साथ भारत में रखा, यहां तक कि उसे राजधानी का काजी नियुक्त कर दिया। इस पदवी पर पूरे 7 साल रहने के बाद 1342 में तुगलक ने उसे चीन के बादशाह के पास अपना दूत बनाकर भेजा, लेकिन किसी कारण से उनकी मुलाकात कभी भी चीनी बादशाह ने नही हुई।

इन्होंने अपना यात्रा वृतांत अरबी भाषा में लिखा था जिसे रिहृला (Rihla) कहा जाता है, इसमें अन्य क्षेत्रों के सिवाए 14वीं सदी के भारत के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के विषय में बहुत ही रोचक जानकारियां हमें प्राप्त होती हैं।

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