सिकंदर के सेनापति सेल्यूकस का इतिहास, जानिए सेल्यूकस कैसे हारा था चंद्रगुप्त से

Seleucus in Hindi

सेल्यूकस सिकंदर के सबसे प्रमुख सेनापतियों में से एक था। वो सिकंदर की मृत्यु के पश्चात सिकंदर द्वारा जीते हुए भारतीय और ईरानी प्रदेशों का उत्तराधिकारी बना था। उसने अपना साम्राज्य भी खड़ा कर लिया था जिसे सेलयूसिद साम्राज्य (Seleucid Empire) कहा जाता है।

सेल्यूकस से जुड़ी मूलभूत जानकारियां

पूरा नाम – सेल्यूकस प्रथम निकेटर (Seleucus I Nicator)
जन्म – 358 ईसापूर्व, मकदूनिया (Macedonia)
मृत्यु – 281 ईसापूर्व (आयु 77 वर्ष), थ्रेस (Thrace)
शासन काल – 312-281 ईसापूर्व (31 वर्ष)
पिता – एंटीओकस (Antiochus)
माता – लेओडायस (Laodice)

सिकंदर की मृत्यु के पश्चात उसके विशाल साम्राज्य को लेकर उसके सेनापतियों में संघर्ष शुरू हो गया। इस संघर्ष में सेल्यूकस भी शामिल था। शुरुआत में तो सेल्यूकस को कई हारों का मुंह देखना पड़ा लेकिन मौका पाते ही उसने बेबीलोन और बैक्टीरिया पर जीत दर्ज कर ली। इस तरह से लगभग पूरा ईरान उसके कब्जे में आ गया।

अब सेल्यूकस अपने साम्राज्य की स्थापना कर चुका था और उसने बैज़ीलीयस (Basileus) की उपाधि भी धारण की थी, जिसका अर्थ होता है – राजा

सेल्यूकस ने भारत पर हमला क्यों किया?

सेल्यूकस सिकंदर की मृत्यु के बाद ज्यादातर समय अपने साम्राज्य के पश्चिमी भाग के युद्धों में ही उलझा रहा, जिससे पूर्वी भागों, जो भारत में थे, वहां यवन हुकूमत कमजोर हो गई। कई जगह तो चंद्रगुप्त मौर्य ने यवनों को भगाकर के वापस आजाद करा लिया।

पश्चिमी भाग में अपना शासन मजबूत करने के बाद सेल्यूकस ने सोचा क्यों ना भारत पर दोबारा से हमला करके उस पर कब्जा किया जाए। उसका भारत पर हमला करने का उद्देश्य धन दौलत हासिल करना भी था क्योंकि लगातार युद्धों से उसके खजाने खाली हो गए थे।

सेल्यूकस तथा चंद्रगुप्त मौर्य के बीच युद्ध कब हुआ

भारत पर हमला करने के लिए सेल्यूकस ने पूरी तरह से तैयारी कर ली। उसकी सेना में करीब 2 लाख पैदल सैनिक, 40 हज़ार घोड़सवार और मित्र राज्यों के करीब 60 हज़ार सैनिक शामिल थे। यानि कि उसने 3 लाख की भारी फौज के साथ भारत पर चढ़ाई की थी।

सेल्यूकस लगभग 20 साल बाद भारत आ रहा था। उसे लगा था कि वो उन भारतीय क्षेत्रों पर आसानी से कब्जा कर लेगा जिन पर सिकंदर को कब्जा करने में कोई खासी मेहनत नहीं करनी पड़ी थी। लेकिन वो गलतफहमी में था। जिस भारत पर वो हमला करने जा रहा था, वो 20 साल पहले का भारत नहीं था जो कई टुकड़ों में बंटा हुआ था, ये वो अखंड भारत था जिस पर एक शेर राज कर रहा था, उस शेर का नाम था – चंद्रगुप्त मौर्य

सेल्यूकस की यवन सेना ने जब सिंधु नदी पार की, तो दूसरी तरफ भारतीय सेना भी स्वागत करने के लिए तैयार खड़ी थी।

भयंकर युद्ध शुरू हो गया। भारतीय सेना ने ऐसा जबरदस्त हल्ला बोला कि वो यवन कौम, जिसने मिसर, ईरान और पूरे अरब जगत को रौंद डाला था, भागने का रास्ता खोजने लगी। कई यवन सैनिक तो भागने के चक्कर में सिंधु नदी में ही कूद गए और डूब कर मर गए।

युद्ध के तीसरे-चौथे घंटे ही सेल्यूकस को लगने लगा था कि अगर युद्ध जारी रहा, तो जिंदा बच पाना मुश्किल है। अंतः उसने चंद्रगुप्त के सामने सरेंडर कर दिया और संधि करने को तैयार हो गया।

इस युद्ध की निश्चित तिथि का कुछ पता नहीं है। लेकिन माना जाता है कि यह युद्ध 305 से 303 ईसा-पूर्व के बीच हुआ था।

संधि की शर्ते

आचार्य चाणक्य जो कि चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु और प्रधानमंत्री थे, ने सेल्यूकस के सामने संधि की निम्नलिखित शर्तें रखीं, जिसे उसने मान लिया।

पहली शर्त ये थी कि सेल्यूकस यवनों के कब्ज़े वाले सारे भारतीय क्षेत्र छोड़ देगा और चंद्रगुप्त को सौंप देगा। ये क्षेत्र काबुल, कंधार, गांधार और बलूचिस्तान के थे जो कि आज के पाकिस्तान और अफगानिस्तान का हिस्सा हैं।

दूसरी शर्त ये थी कि सेल्यूकस अपनी बेटी हेलेन की शादी चंद्रगुप्त से करेगा। हेलेन से प्राप्त संतान उत्तराधिकारी नहीं बन सकेगी क्योंकि विदेशी होने कारण हेलेन की निष्ठा कभी भारत के साथ नही होगी और उसका पुत्र भी उसके प्रभाव से मुक्त नहीं हो पाएगा।

संधि पूर्व जब चंद्रगुप्त और हेलेन का विवाह हुआ तो सेल्यूकस को मैत्री स्वरूप 500 युद्ध हाथी भेंट किए गए। सेल्यूकस ने मेगस्थनीज नाम के विद्वान को राजदूत के रूप में चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में नियुक्त किया।

सेल्यूकस की मृत्यु

Seleucus History in Hindi

281 ईसापूर्व में दक्षिण-पूर्वी यूरोप के क्षेत्र थ्रेस में सेल्यूकस की मौत हो गई थी जिसके बाद उसका पुत्र एंटीऑक्स उसका उत्तराधिकारी बना। सेल्यूकस का बनाया साम्राज्य कोई 200 साल तक टिका रहा और 63 ईसापूर्व में उसका पतन हो गया।

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