सन 1661 से 1663 तक मुगल फौज़ ने शाइस्ता खाँ की अगुवाई में छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्य को बहुत नुकसान पहुँचाया था। गांवो के गांव जला दिए थे और कई लोगों की हत्या कर दी थी। शिवाजी ने अप्रैल 1663 की एक रात को शाइस्ता खाँ पर अपने 400 साथियों के साथ हमला करके ख़ान को वापिस जाने पर मज़बूर भले ही कर दिया था, पर इतने से मराठों का गुस्सा ठंडा नहीं हुआ। शिवाजी ने अपने राज्य के आर्थिक नुकसान को पूरा करने के लिए सूरत पर हमला करने की योजना बनाई जो कि उस समय मुगल साम्राज्य का एक बहुत अमीर शहर था।
शिवाजी द्वारा सूरत की लूट एक साहसिक कारनामा था क्योंकि ये उस मुगल सल्तनत का शहर था जिसकी कुल सेना शिवाजी की अपनी सेना से 50 गुणा थी। हांलाकि शिवाजी के लिए यह फायदेमंद रहा कि सूरत शहर की सुरक्षा के प्रति मुगल गंभीर नहीं थे और वहां एक नाम मात्र की छोटी सी फौज़ थी। इस मुगल फौज़ का कमांडर और शहर का गवर्नर इनायत ख़ान था जो शिवाजी के आने की ख़बर सुनकर किले में छुप गया था।
शिवाजी बड़े गुप्त ढंग और तेज़ी से सूरत पहुँचे थे
जिस दिन शिवाजी सूरत पहुँचे थे उससे 9 दिन पहले वो मुंबई के आसपास थे। वहां से वो अपने 4 हज़ार सैनिकों के साथ इतनी तेज़ी से और गुप्त ढंग से रवाना हुए के सूरत पहुँचने के एक दिन बाद वहां के लोगों को उनके आने का पता चला।
शिवाजी माहूली और कोहज़ के किलो से होते हुए जावहर और फिर 6 जनवरी 1664 को सुबर 11 बज़े के करीब सूरत पहुँच गए। (कुछ इतिहासकारों के अनुसार शिवाजी 5 जनवरी को सूरत पहुँचे थे।)
सूरत पहुँचकर उन्होंने शहर के पूर्वी द्वार के पास अपना डेरा डाल लिया। उन्होंने शहर के गवर्नर इनायत ख़ान और तीन बड़े अमीरों वीरजी वोरा, हाजी जाहिद बेग और हाजी कासिम के पास अपने संदेशवाहक भेजे कि वो शिवाजी को बिना किसी हिंसा के धन दे दें। पर उनको कोई उत्तर नहीं मिला। हांलाकि इनायत ख़ान ने अगले दिन अपना एक साथी शिवाजी के पास भेजा।
शिवाजी को धोखे से मारने की हुई साजिश
इनायत ख़ान ने शिवाजी के पास अपना जो साथी भेजा था वो शिवाजी के सामने बिलकुल बेकार सी शर्तों की बातें करने लगा था। शिवाजी उसकी बातों से तंग आ गए और उसे डांटने लगे कि तभी उसने एक खंज़र निकाल कर शिवाजी पर वार किया। वार शिवाजी पर लगता उससे पहले ही उनके मराठा अंगरक्षक ने हमलावर का हाथ काट दिया। हमलावर इतनी तेज़ी से आगे बढ़ा था कि हाथ कटने के बाद भी वो शिवाजी से टकरा गया। लेकिन जल्द ही हमलावर की खोपड़ी के दो टुकड़े कर दिए गए।
शिवाजी पर हमले से मराठा सैनिक गुस्से में आ गए। उन्होंने सूरत शहर के प्रबंधक मुगलों और अमीरों को लूटना शुरू कर दिया। कईओं की हवेलियों में आग लगा दी गई जिस तरह से मुगलों ने शिवाजी के राज्य के गांवो और शहरों में लगाई थी। पूरे शहर को लूटने में 4 दिन लगे थे। यह लूट 6 जनवरी से 10 जनवरी 1664 तक हुई थी।
शिवाजी द्वारा सूरत की लूट बिलकुल जायज़ थी
कुछ इतिहासकार शिवाजी द्वारा सूरत की लूट को जायज नही मानते। लेकिन वो यह भूल जाते है कि इससे पहले तीन साल के दौरान मुगलों ने उनका आधे से ज्यादा राज्य जलाकर तबाह कर दिया था। सैनिक मराठों के सिवाए असैनिक नागरिकों का भी बिना मतलब का खून बहाया गया था।
शिवाजी ने सूरत शहर में पहुँचते ही ऐलान कर दिया था कि वो किसी को नुकसान पहुँचाने नहीं आए बल्कि औरंगज़ेब से उनके राज्य पर हमला करने और उनके कुछ रिश्तेदारों के कत्ल का बदला लेने के लिए आए हैं।
मुस्लिम इतिहासकार खफी खाँ ने शिवाजी को “धोखे का पिता और शैतान का चतुर बेटा” कहा है लेकिन वो यह भी कहता है कि शिवाजी ने यह नियम बना रखा था कि जब उनके साथी लूट करने लगें वे मस्जिदों को, धर्म-ग्रन्थों को और स्त्रियों को हानि न पहुँचाएं। जब भी कभी उन्हें कुरान की पुस्तक मिलती वे आदरसहित अपने किसी मुसलमान साथी को दे दिया करते।
एक युरोपियन व्यापारी ने सूरत की लूट के बारे में कहा है कि मराठे चाँदी, सोना, जड़े हुए अथवा बिना जड़े हुए हीरे-जवाहरात, अन्य कीमती वस्तुओं के सिवाए सूरत से कुछ लेकर नहीं गए। कहा जाता है कि सूरत की लूट के समय मराठों ने कपड़ा, ताँबे के बर्तन इत्यादि वस्तुओं को हाथ भी नहीं लगाया था।
सूरत की लूट के समय मोहनदास पारेख के व्यक्ति की संपत्ति को नही लुटा गया था क्योंकि वो एक धार्मिक व्यक्ति था। विदेशी मिशनरियों के घरों को भी नहीं लूटा गया था।
सूरत की लूट के बाद
सूरत पर हमले से शिवाजी को 1 करोड़ से ज्यादा की रकम मिली थी जिससे उस नुकसान की माली भरवाई हो सकती थी जिसका कारण मुगल स्वयं थे। 10 जनवरी 1664 को मराठे लूट का सारा सामान लेकर महाराष्ट्र की ओर निकल गए।
मराठों के जाने के बाद इनायत ख़ान जब किले से बाहर निकला, तो लोगों ने उसकी हाय-हाय की। इनायत ख़ान का बेटा इससे गुस्से में आ गया और उसने अपनी खीझ एक हिंदु व्यापारी को गोली मारकर पूरी की।
सूरत की लूट ने औरंगजेब को हैरान करके रख दिया। जिस मुगल साम्राज्य की तरफ कोई आंख उठाने की भी नहीं सोचता था उसके एक अमीर शहर को कुछ हज़ार लोग बूरी तरह से लूट कर ले गए थे।
औरंगजेब ने इसके बाद राजपूत राजा जय सिंह को शिवाजी को काबू में करने के लिए भेजा जो अपने उद्देश्य में सफल रहा।
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References :
- Wikipedia (Related Article)
- Shivaji: The Grand Rebel by Dennis Kincaid
- Shivaji and His Times by Jadunath Sarkar
- CHHATRAPATI SHIVAJI by KrishanNath Joshi
Note : छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा सूरत पर हमले को लेकर अलग-अलग इतिहासकारों के अपने-अपने मत है। अगर आपके भी कोई विचार हों, तो वो Comments के माध्यम से रख सकते हैं।
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