Sarus Crane / सारस क्रेन जिसे हमारे भारत में सिर्फ सारस जा क्रौंच ही कहा जाता है दुनिया का सबसे बड़ा पक्षी है जो कि उड़ सकता है। दूसरे शब्दों में उड़ने वाले पक्षिओं में सारस सबसे बड़ा है। जब ये खड़े होते है तो इनकी औसत ऊँचाई 5 से 6 फुट तक होती है।
दुनिया का सबसे बड़ा उड़ने वाला पक्षी होने के सिवाए सारस की कई और विशेषताएं भी हैं, जिनके बारे में आपको इस पोस्ट में बताया जाएगा।
पेश हैं सारस से जुड़ी 6 मज़ेदार जानकारियां-
सारस पक्षी के बारे में 6 रोचक बातें – Sarus Crane in Hindi
1. भारत में सबसे ज्यादा पाया जाता है सारस पक्षी
आपको जानकर खुशी होगी कि वर्तमान समय में सारस पक्षी भारत में ही पाया जाता है। पहले यह कुछ और देशों में भी पाया जाता था लेकिन अब ये भारत तक ही सीमित रह गए हैं।
भारत में इनकी संख्या 15 से 20 हज़ार तक है और ये उत्तर प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तरी महाराष्ट्र में ज्यादा पाया जाता है। हरियाणा और जम्मू-कश्मीर में भी इन्हें कभी कभार देखा जा सकता है।
सारस भारत के स्थाई निवासी हैं और अक्सर एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहना पसंद करते हैं। ये अक्सर दलदली भूमि, बाढ़ वाले स्थान, तालाब, झील, धान के खेत और एकांत स्थानों पर अपने निवास बनाते हैं। इनका घोंसला छिछले पानी के पास हरी-भरी झाड़ियों और घास के पास पाया जाता है। घोंसला बनाने में मादा अहम भूमिका निभाती है।
सारस आमतौर पर 2 से 5 तक के समूह में रहते है। ये मुख्यतः शाकाहारी होते और बीज़ों वगैरह को खाते हैं। कभी-कभार ये छोटे-छोटे जीवों को भी निगल जाते हैं।
2. सारस पक्षी का संबंध रामायण से है
जब रामायण की कथा का आरंभ होता है तो सारस के एक जोड़े से वर्णन शुरू होता है। महर्षि वाल्मीकि इस प्यारे जोड़े को देख रहे होते है तभी अचानक एक शिकारी तीर से एक सारस को अपना शिकार बना लेता है। तभी दूसरा सारस अपने साथी के विछौड़े में अपने प्राण त्याग देता है।
महर्षि वाल्मीकि उस शिकारी को श्राप दे देते हैं-
मा निषाद प्रतिष्ठांत्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत् क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्।।
अर्थात्, हे निषाद! तुझे निरंतर कभी शांति न मिले। तूमने इस सारस के जोड़े में से एक की जो काम से मोहित हो रहा था, बिना किसी अपराध के हत्या कर डाली।
रामायण कथा में यह वर्णन जोड़कर कितनी सुंदरता से महर्षि वाल्मीकि जी ने लोगों को इस पक्षी का शिकार करने से रोका है।
3. प्रेम का प्रतीक है सारस
सारस को प्रेम और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। अपने जीवन काल में जिसे ये एक बार अपना साथी बना लेता है उसके साथ पूरा जीवन रहता है। अगर किसी कारण एक साथी की मृत्यु हो जाती है तो दूसरा पूरी जिंदगी कोई और साथी नहीं बनाता है। वो धीरे-धीरे खाना-पानी बंद कर देता है जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है।
नर सारस जब आसमान की तरफ़ चोंच उठाकर एक लंबी और गूंजती हुई आवाज़ निकालता है तो जवाब में मादा उसे दो बार छोटे स्वरों में जवाब देती है। सारसों की इन आवाज़ों को बहुत दूर तक सुना जा सकता है।
भारत में इस पक्षी को दांपत्य प्रेम का प्रतीक माना जाता है और कई जगहों पर नवविवाहित जोड़े के लिए सारस युगल का दर्शन करना जरूरी परंपरा है।
4. सारस पक्षी की शारीरिक बनावट
सारस का वैज्ञानिक नाम ‘Grus antigone’ (ग्रस एंटीगोन) है। इनका औसतन वज़न 6.35 kg होता है। लंबाई में ये 5 से 6 फुट तक के हो सकते है जैसा कि हमने पहले बताया था।
नर और मादा में कोई बड़ा अंतर नहीं होता जिसके कारण इनके लिंग की पहचान कर सकना मुश्किल होता है, लेकिन मादा नर के मुकाबले थोड़ी छोटी होती है जिससे इन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है।
उड़ते समय इनके पंखों का फैलाव 250 सैंटीमीटर तक चला जाता है।
5. सारस प्रजनन कैसे करते हैं
आम तौर पर बारिश के मौसम सारसों का सहवास काल होता है। यह सहवास करने से पहले नृत्य भी करते हैं।
मादा एक बार दो से तीन अंडे तक देती है जिनकी रक्षा का जिम्मा नर पर होता है। एक महीने बाद अंडो से चूज़े निकलते है। पहले 4-5 हफ्तों तक माता-पिता उनका पालन पोषण करते है और उन्हें खाना लाकर देते है जिनमें बीज़, कीट, पौधों की जड़े शामिल होती है। इसके बाद चूज़े खुद अपना भोजन प्राप्त करना सीख लेते हैं।
जन्म के 3-4 महीनों बाद चुज़े आत्मनिर्भर हो जाते है और अपने माता-पिता के बिना भी अपना पालन-पोषण कर सकते हैं। सारसों का औसतन जीवन काल 16 से 18 वर्षों तक होता है।
6. ख़तरे में है सारस प्रजाति
बड़े दुख की बात है कि भारत में सारसों की संख्या दिन प्रतिदिन घट रही है। इस वजह से इन्हें संकटग्रस्त प्रजाति घोषित कर दिया गया है। आपको बता दे कि मलेशिया, फिलीपींस और थाइलैंड में सारस पक्षी पूरी तरह से खत्म हो चुका है औऱ भारत में खत्म होने की कगार पर है।
जंगलों की लगातार हो रही कमी, खेतों में किया जा रहा कीटनाशकों का छिड़काव, शिकार, बदलता पर्यावरण, चूज़ों की तस्करी सारसों के खत्म होने का कारण बनते जा रहे हैं। जंगली बिल्लियां और लोमड़िया कभी-कभी इनके बच्चों को उठाकर ले जाती है। वैसे आकार में बड़ा होने कारण इन्हें कौवे और चील जैसे शिकारी पक्षियों से कोई ख़तरा नहीं है लेकिन जंगली कुत्तों के झुंड में ये अपने आपको असहाय पाते हैं।
वैसे जानवरों के मुकाबले सारस प्रजाति को मानव से ज्यादा ख़तरा है। हमारे पर्यावरण और समाज में बड़े बदलाव की जरूरत है, जो कि हमारे हाथों में ही है। लेकिन हम हैं कि मानते नहीं!
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