1661-63 में शिवाजी की लड़ाईयां और मुगलों से संघर्ष

जुलाई-अगस्त 1660 में पन्हाला और फिर चाकन का किला मुगलों के कब्ज़े में आ जाने से शिवाजी को काफी नुकसान हुआ था। 1660 के आखरी तीन-चार महीने उन्होंने अपना समय बिना किसी लड़ाई के चुपचाप राजगढ़ में बिताया। इस समय में उन्होंने अपनी सेना को संगठित किया और आगे की योजनाएं बनाई।

उधर भले ही अगस्त 1660 में शाइस्ता खाँ ने चाकन के किले को मराठों से जीत लिया था लेकिन इस आसान से किले को जीतने के लिए उसे काफी नुकसान उठाना पड़ा था। इसके बाद वो बारिश के मौसम में पुणे वापिस आ गया (अगस्त 1660 के अंत में) और 1660 के अंत तक मराठों के खिलाफ़ कोई बड़ी कारवाई नहीं की।

Note : यह लेख Rochhak.com द्वारा लिखी जा रही ‘मराठा इतिहास‘ सीरीज़ का हिस्सा है। यह लेख मराठा इतिहास के उस पड़ाव का हिस्सा है जब औरंगजेब शिवाजी के विरूद्ध अपने मामा शाइस्ता खाँ को भेजता है। इस लेख में 1661-63 में शिवाजी के द्वारा लड़ी गई लड़ाईयां और मुगलों से उनके संघर्ष के बारे में बताया गया है। 1660 में शाइस्ता खाँ पुणे और चाकन पर कब्ज़ा कर लेता है जिसके बारे में पहले बताया जा चुका है।

इस लेख में 1661-63 में शिवाजी और उनके मुगलों से संघर्ष की नीचे दी घटनाओं के बारे में बताया गया है-

  1. उंबरखिंड का युद्ध
  2. 1661 में शिवाजी की अन्य जीतें
  3. पूरे 1662 और 1663 के पहले तीन महीनों के हालात

Battle of Umberkhind in Hindi

1. उंबरखिंड का युद्ध – Battle of Umberkhind

1661 के शुरू में शाइस्ता खाँ ने कल्याण के इलाकों को पूरी तरह से जीतने की योजना बनाई। कल्याण और उसके आसपास के क्षेत्र कोकण तट का उत्तरी भाग हैं। यहां पर 1660 की अप्रैल से इस्माइल की अगुवाई में 3 हज़ार मुगल सैनिक काम कर रहे थे। उन्होंने कल्याण के आसपास के कुछ क्षेत्रों को तो कब्ज़े में कर लिया था लेकिन कल्याण शहर और पास के मुख्य किले जीतने अभी बाकी थे।

कल्याण को पूरी तरह से जीतने के लिए शाइस्ता खाँ ने कारतलब खाँ को 35 हज़ार की सेना के साथ भेजा। शिवाजी को भी इसकी ख़बर मिल चुकी थी और वो अपने चुने हुए 1 हज़ार मराठा सैनिकों के साथ कारतलब को सबक सिखाने के लिए निकल पड़े।

पुणे से कल्याण जाने का रास्ता घने जंगलों, चट्टानों और तंग व ख़राब रास्तों से होकर जाता था। इस रास्ते से 35 हज़ार की मुगल फौजों को भारी भरकम समान और तोपख़ाने के साथ जाना पड़ा और उनका बुरा हाल हो गया। मुगल फौज़ प्यास और भूख से मरी पड़ी थी और उनमें आगे जाने की हिम्मत नहीं थी।

मुगल सेना जब उंबरखिंड नामक पहाड़ी स्थान के पास पहुँची तो ऊँचाई पर शिवाजी अपने 1 हज़ार मराठा सैनिकों के साथ उनका स्वागत करने के लिए तैयार खड़े थे। मराठों ने ‘हर हर महादेव’ का नारा लगाया और मुगलों पर चारो ओर से हमला कर दिया।

कारतलब ख़ान ने लड़ाई के पहले एक-दो घंटों में ही समझ लिया था कि उनका बुरा हाल हुई सेना अब और लड़ नही पाएगी और उसने शिवाजी के आगे हथियार डाल दिए।

मराठों ने मुगलों का सारा दाना-पानी, साज़ो-समान और हथियार जब्त कर लिए और उन्हें वापिस जाने दिया।

उंबरखिंड का ये युद्ध 3 फरवरी 1661 को हुआ था जिसमें 1 हज़ार तेज़ मराठों से 35 हज़ार की मुगल फौज़ हार गई।

2. 1661 में शिवाजी की अन्य जीतें

कल्याण जिले को मुगलों से आज़ाद करवाने के बाद शिवाजी ने अपनी सेना को दो भागों में बांटा। एक भाग मुगलों के विरूद्ध कारवाई करने के लिए नेताजी पालकर को सौंपा और दूसरा क्लयाण के दक्षिण में स्थित बीजापुरी इलाकों पर हमला करने के लिए अपने अधीन रखा।

बीजापुरी सल्तनत के जो इलाके कोकण तट के क्षेत्र में आते थे उनके प्रबंधक बिल्कुल ढीले थे जो शिवाजी से मुकाबला नहीं कर सकते थे।

Battle of Umberkhind

– शिवाजी ने सबसे पहले निज़ामपुर पर हमला किया और फिर दाभोल की बंदरगाह को अपने कब्ज़े में ले लया। (फरवरी 1661)

– इसके बाद शिवाजी ने संगमेश्वर शहर पर कब्ज़ा करने के लिए पिलाजी नीलकंठ और तानाजी मालुसरे को भेजा। शिवाजी ने शरिंगपुर के राजे सूर्य देव को इन दोनों की सहायता करने के लिए कहा।

(शरिंगपुर का राजा सूर्य देव बीजापुर सुल्तान के अधीन था और शिवाजी की बढ़ती शक्ति के डर से शिवाजी के साथ होने का नाटक करते रहता था। रात के समय उसने संगमेश्वर में तैनात मराठा सेना पर हमला कर दिया था लेकिन तानाजी मालुसरे ने उस हमले को पछाड़ दिया।)

– जिस दिन शिवाजी तानाजी और नीलकंठ को संगमेश्वर पर कब्ज़ा करने के लिए कह गए थे उस दिन वो राजापुर की ओर निकल पड़े थे।

– 3 मार्च 1661 को शिवाजी ने राजापुर पर कब्ज़ा कर लिया था और रत्नागिरी जिले के बहुत सारे प्रबंधक उन्हें चौथे की रकम देने के लिए तैयार हो गए।

ऊपर दिए शिवाजी के हमलों से स्थानक लोग पहले डरकर भाग जाते थे लेकिन शिवाजी सभी लोगों को वापिस बुलाकर नई सरकार के अधीन रहने की प्रेरणा देते। खेतीबाड़ी और बाकी के कामकाज़ वापिस से शुरू हो जाते।

शिवाजी ने अप्रैल 1661 में सूर्य देव को भी सबक सिखाया और उसकी रियासत पर कब्ज़ा कर लिया। शिवाजी ने इन जीतों के बाद मंदनगढ़ किले को किलेबंद कर दिया, शरिंगपुर में प्रचीतगढ़ किले की मरम्मत करवाई और पालगढ़ का नया किला भी बनवाया।

कल्याण की हार

भले ही शिवाजी ने उंबरखिंड के युद्ध के बाद कल्याण को आज़ाद करवा लिया था लेकिन मई 1661 में मुगलों ने उसे वापिस छीन लिया। शिवाजी ने कल्याण को वापिस पाने के लिए महाद में सेना भी इक्ट्ठी की पर वो असफल रही।

1661 की जून के अंत में शिवाजी वरधनगढ़ के किले में चले गए और साल के अंत तक कोई बड़ी कारवाई नहीं की। इस समय में उन्होंने अपनी सेना को संगठित किया और आगे की योजना बनाई।

3. पूरे 1662 और 1663 के पहले तीन महीनों के हालात

1662 के पूरे साल और 1663 के पहले तीन महीनों में मुगलों ने मराठों पर हमला करने में काफी तेज़ी दिखाई और शिवाजी का आधे से ज्यादा राज्य तबाह कर उस पर कब्ज़ा कर लिया।

पूरे 1662 और 1663 के पहले तीन महीनों की कारवाइयों के बाद मुगलों के पास उत्तरी कोकण के इलाकों पर कब्ज़ा था जिसमें पूरा कल्याण शहर और उसके आसपास के इलाके शामिल थे। शिवाजी का कब्ज़ा दक्षिणी कोकण और रत्नागिरी जिले पर बना रहा।

मराठो ने मुगलो का जीना दूभर कर रखा था और उन्हें समझ नही आ रहा था कि दुश्मन से कैसे निपटा जाए। तंग आकर शाइस्ता खाँ ने फिर से वर्षा ऋतु पुणे में व्यतीत करने का फैसला किया। लेकिन यहां पर रात को शिवाजी ने अपने 400 साथिओं के साथ उस पर हमला कर दिया। इस घटना से शाइस्ता खाँ इतना डर गया कि उसे महाराष्ट्र से खिसकना पड़ा। इस घटना के बारे में अगले लेख में विस्तार से जानें।

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References :

  • Wikipedia (Related Articles)
  • Shivaji: The Grand Rebel by Dennis Kincaid
  • Challenging Destiny : A Biography of Chhatrapati Shivaji by Medha Deshmukh Bhaskaran
  • Shivaji and His Times by Jadunath Sarkar
  • CHHATRAPATI SHIVAJI by KrishanNath Joshi

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