शेर शाह सूरी के इतिहास के 8 महत्वपूर्ण पड़ाव | Sher Shah Suri History In Hindi

Sher Shah Suri History In Hindi

शेर शाह सूरी का इतिहास – Sher Shah Suri History In Hindi

शेर शाह सूरी भारत में जन्मे एक अफ़गान पठान थे जिन्होंने 1540 ईस्वी मे मुगल शासक हुमायुँ को हराकर उत्तरी भारत में सूरी साम्राज्य की स्थापना की। शेर शाह सूरी ने सिर्फ 5 साल ही राज किया लेकिन इस समय में उन्होंने खुद को एक सक्षम सेनापति ही नहीं बल्कि एक अच्छा प्रशासक भी साबित किया।

शेर शाह सूरी ने अपने शासनकाल में पहला रूपया जारी किया, भारत की डाक व्यवस्था को पुनःसंगठित किया और सम्राट अशोक द्वारा 1700 साल पहले बनवाए गए GT Road को विस्तार दिया और उसकी मरम्मत करवाई। इसके सिवाए उन्होंने बिना भेदभाव से अपनी प्रजा के लिए कई और काम भी किए।

शेर शाह सूरी के बारे में एक प्रख्यात इतिहासकार का कहना है- “हमें इतिहास में कोई भी दूसरा ऐसा व्यक्ति नही मिलता जो अपने आरंभिक समय में सैनिक रहे बिना एक साम्राज्य की नींव रखने में सफ़ल हुआ हो और दिल्ली की गद्दी पर सिर्फ 5 साल तक बैठे रहिने के दौरान ऐसे महत्वपूर्ण काम कर गया हो जिन्हें सुनहरी अक्षरों में लिखा जाना चाहिए।”

आपके सामने पेश है इस महान शासक के इतिहास से जुड़ी 8 महत्वपूर्ण बातें-

1. शेर शाह सूरी बिहार में नहीं पंजाब में पैदा हुआ था

इंटरनेट पर शेर शाह सूरी के बारे में जितने भी लेख मौजूद है उन सब में शेरशाह का जन्म बिहार के सासाराम शहर में बताया गया है, पर यह सही नहीं है। शेर शाह सूरी का जन्म पंजाब के फतेहगढ़ साहिब जिले के बजवाडा गांव में हुआ था।

शेरशाह के दादा इब्राहिम ख़ान सूरी नारनौल क्षेत्र (हरियाणा) में दिल्ली सल्तनत के एक जागीरदार थे। शेरशाह के पिता हसन ख़ान थे जो कि पंजाब के बज़वाडा के जागीरदार जम़ाल ख़ान के पास नौकरी करते थे।

शेरशाह का असली नाम फ़रीद ख़ान था। इसके पिता हसन ख़ान की चार बीवियां थी। पहली बीवी से ही फरीद ख़ान उर्फ शेर शाह सूरी का जन्म हुआ था।

हसन ख़ान को जब बिहार के सासाराम में एक छोटी सी जागीर प्राप्त हो गई तो फ़रीद ख़ान (शेरशाह) भी अपने पिता के साथ सासाराम आ गया।

2. शेरशाह को उसकी सौतेली मां बहुत सताती थी

जब शेरशाह थोड़ा बड़ा हुआ तो उसे अपनी सौतेली मां की जलन का शिकार होना पड़ा। इस वजह से शेरशाह और उसके पिता के बीच अनबन हो गई। सुलाह होने के बाद शेरशाह को उसके पिता ने अपनी जागीर के एक परगने (आज की तहसील की तरह प्रशासनिक ईकाई) का कामकाज़ सौंप दिया।

शेरशाह को जिस परगने का काम-काज़ सौंपा गया था उसके चारो ओर घने जंगल थे जिनमें चोर, लुटेरे और डाकू प्रजा को सताने के बाद छिप जाया करते थे। इन जंगलों में जो चोर, लुटेरे थे वो सब के सब पहले किसान थे।

असल में उस समय जागीरदारो द्वारा किसानों पर बहुत अत्याचार किए जाते थे। वो किसानों की मेहनत से पैदा की हुई फसल को उठा कर ले जाते थे। सरकारी अधिकारी तरह-तरह के टैक्स लगाकर किसानों को लूट रहे थे। जो किसान इन जागीरदारों के अत्याचार से तंग आ आते वो गांव छोड़कर जंगलों में चले जाते और लुटेरे बन जाते।

शेर शाह सूरी ने जब इस पूरी स्थिती को देखा तो उसने ठान लिया कि वो इस बद-इंतज़ामी और भ्रष्टाचार का खात्मा करके रहेगा।

शेर शाह ने अपने कर्मचारियों को बुलाकर कहा-

“मैं ये जानता हुँ कि लगान वसूल करते समय तुम लोग किसानों से किताना कठोर बर्ताव करते हो। अब मैंने हर तरह के लगान तय कर दिए है। अगर लगान वसूलते समय तुम लोगों ने तय दर से ज्यादा लगान लिया, तो तुम लोग सज़ा के भागीदार होंगे।”

उसने किसानों को बुलाकर कहा-

“अगर कोई भी आप लोगों को तंग करे तो सीधा मुझ से आकर मिलें। आप लोगों पर अत्याचार करने वालों को मैं कभी भी माफ़ नहीं करुँगा।”

अपने परगने के बेहतर इंतज़ाम के कारण शेरशाह को अपनी सौतेली मां की जलन का फिर से शिकार होना पड़ा। इसलिए शेरशाह ने इस परगने को छोड़ दिया और बिहार के स्वघोषित स्वतंत्र शासक बहार ख़ान नूहानी की सेवा में चला गया।

3. शेर शाह बहार ख़ान की सेवा में

बहार ख़ान के दरबार में शेर शाह जल्द ही उसका सहायक नियुक्त हो गया और बहार ख़ान के नाबालिग बेटे का गुरू बन गया। एक दिन शिकार खेलते हुए फ़रीद (शेर शाह) ने अकेले ही एक शेर का मुकाबला करके उसे मार दिया। बहार ख़ान ने खुश होकर उसे ‘शेर ख़ान’ की उपाधि दे दी जो बाद में चल कर ‘शेर शाह’ बन बन गया। उनका कुलनाम ‘सूरी’ उनके गृहनगर “सुर” से लिया गया था।

लेकिन यहां पर शेर शाह को अपनी काबलियत के कारण बहार ख़ान के अधिकारियों के कमीनेपन और जलन का शिकार होना पड़ा। जिसकी वजह से उसे बहार ख़ान की नौकरी छोड़नी पड़ी।

इसके बाद वो बाबर की सेवा में चला गया जो दिल्ली और इसके आसपास के इलाकों पर कब्ज़ा करके बादशाह बन चुका था। लेकिन शेर शाह को मुगल पसंद नहीं आए और वो फिर वापिस बिहार आ गया।

बिहार आने के बाद शेर शाह को पता चला कि उसे पुराने मालिक बहार ख़ान की मौत हो गई है। बहार ख़ान की बीवी बहुत समझदार औरत थी। बेगम ने शेर शाह सूरी को बुलाकर उसे बिहार का सूबेदार बना दिया जिसने शेर शाह के आगे बढ़ने का रास्ता खोल दिया।

4. सूरी साम्राज्य की स्थापना और विस्तार

शुरू-शुरू में शेरशाह अपने आपको मुगलों का प्रतिनिधि ही बताता रहा पर उसकी चाहत अपना साम्राज्य स्थापित करने की थी। 1537 में बंगाल पर हमला कर उसने एक बड़े भाग पर कब्ज़ा जमा लिया।

अफ़गान लोग कई पुश्तो से हिंदुस्तान में रहते हुए खुद को पुरी तरह से हिंदुस्तानी समझते थे जबकि मुगलों को बाहर से आए हुए हमलावर, लुटेरे। इस आधार पर शेर शाह ने अपने झंड़े तले अफ़गान सैनिकों की बड़ी फौज़ खड़ी कर ली।

हुमायुँ को जब शेर शाह की गतिविधियों के बारे में पता चला तो वो एक बड़ी फौज़ लेकर बिहार की ओर निकल पड़ा। इधर शेर शाह की फौज़ की गिणती कम थी जिमें अफ़गान सैनिकों के सिवाए हिंदू (राजपूत) सैनिक भी थे।

5. शेरशाह सूरी और हुमायूं के बीच युद्ध

चौसा के मैदान जो कि बिहार में स्थिथ है, में दोनो सेनाओं का आसना-सामना होता है। अफ़गान और राजपूत सैनिकों ने मुगलिया फौज़ पर ऐसा जबरदस्त हमला किया और ऐसा बहादुरी से लड़े कि तैमूर/मंगोल कौम के सिपाही, जिन्होंने पूरे मध्य एशिया, ईरान और अफ़गानिस्तान में तबाही मचा रखी थी पीठ दिखाकर और सिर पर पैर रखकर भाग खड़े हुए। बहुत सारे मुगल सिपाही अपनी जान बचाने के चक्कर में गंगा नदी में डूब कर मर गए।

शेर शाह ने हुमायुँ का पीछा करने के लिए अपने एक हिंदू सेनापति ब्रहमजीत को भेजा। ब्रहमजीत को यह हिदायत थी कि दुश्मन को मारे नहीं बल्कि उनके मन में डर पैदा करें। हुमायुँ की बची-कुची फौज़ लाहौर तक भागती रही और ब्रहमजीत ने उसे लाहौर से भी परे काबूल तक धकेल दिया।

हुमायुँ की इस हार से भारत से अगले कुछ सालो तक मुगल साम्राज्य का खात्मा हो गया और शेरशाह सूरी ने अपने साम्राज्य को बंगाल से पेशावर तक कायम कर दिया।

यह लौधी साम्राज्य के बाद भारत में दूसरा पठान साम्राज्य था।

6. शेर शाह सूरी की प्रशासनिक व्यवस्था

शेर शाह इस बात में यकीन रखता था कि हकुमत का सबसे प्रमुख काम प्रजा की खुशहाली और भलाई है। आप हैरान रह जाएंगे कि सिर्फ 5 साल के राज में शेर शाह ने क्या-क्या काम कर डाला-

1. भूमि की पैमाइश

सबसे पहले उसने बंगाल से गुजरात और पंजाब से मध्य प्रदेश तक सारी उपलाऊ भूमि की पैमाइश करवाई और इसे तीन हिस्सों में बांटा। (1) बहुत उपजाऊ, (2) मध्यम उपजाऊ और (3) कम उपजाऊ। लगान भी भूमि की उपजाऊ शक्ति के हिसाब से तय कर दिए।

2. रूपए की शुरूआत

शेर शाह सूरी ने पहले रूपए की शुरूआत की। रूपया आज भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, इंडोनेशिया, मॉरशस, मालदीव और सेशेल्स की करंसी है।

3. डाक व्यवस्था को पुनःसंगठित किया

उसने भारत में चल रही डाक व्यवस्था को दुबारा से संगठित किया जिसका इस्तेमाल आम लोग भी अपने परिचितों को संदेश पहुँचाने के लिए कर सकते थे।

4. G.T Road का पुनिःनिर्माण

शेर शाह सूरी के सबसे बड़े कामों में से एक था – G.T Road का पुनिःनिर्माण। इसे सबसे पहले सम्राट अशोक ने बनवाया था। उसके बाद 1700 साल तक किसी राजा महाराज ने इसकी खबर-सार नहीं ली। शेर शाह ने इस सड़क को तो दुबारा बनवाया ही, साथ ही में नई सड़कों का निर्माण भी करवाया, जैसे कि – आगरा से बुरहानपुर, आगरा से जोधपुर, लाहौर से मुल्तान।

5. सराओं का निर्माण

शेर शाह ने सभी सड़कों के दोनों तरफ छावदार पेड़ भी लगवाए। हर 8 किलोमीटर के बाद सराएं बनवाई जिनमें हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अलग-अलग कमरे होते। मुसाफिरों के लिए भेजन भी उपलब्ध करवाया जाता था।

6. भ्रष्ट इमामों और मौलवियों पर नकेल कसी

शेर शाह ने इमामों और मौलवियों द्वारा इस्लाम के नाम पर किए जा रहे भ्रष्टाचार को बंद किया। मौलवियों और इमामों ने गलत तरीको से बहुत सारी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रखा था। शेर शाह ने हर मस्जिद के रख रखाव के लिए मौलवियों को पैसा ना देकर, मुंशियों की नियुक्ति कर दी जो मस्जिदों की देख भाल करते थे।

शेरशाह के बाद मुगल बादशाह अकबर ने भी उसकी नीतिओं को जारी रखा। भले ही शेर शाह सूरी मुगलों का सबसे बड़ा दुश्मन था और अकबर के बाप हुमायुँ को उसकी वजह से 10 साल दर-दर ठोकरे खानी पड़ी लेकिन अकबर की खूबी यह थी कि उसने अपने दुश्मन शेर शाह सूरी के विचारों और नीतिओं की कदर की।

7. शेर शाह सूरी की धार्मिक नीति

शेर शाह सूरी शायद पहला मुसलमान शासक था जिसने हिंदु राजाओं के साथ दोस्ताना संबंध स्थापित किए। उसने मज़हब और राजनीति को अलग-अलग रखा। उसके राज में पहले के मुसलमान शाशकों की तरह ना तो हिंदुओं पर कोई अत्याचार हुए और ना ही मंदिरों को तुड़वाया गया।

उसकी फौज़ में भले ही ज्यादातर सेनापति मुस्लिम होते पर नौकरिओं में हिंदुओं की गिणती ज्यादा थी। उसके एक प्रमुख सेनापति का नाम ब्रहमजीत था जो कि हिंदु राजपूत राजा था। शेर शाह का एक दीवान हिन्दू सरदार था, जिसका नाम हेमू (हेमचंद्र) था। इस हेमू को ही अकबर ने पानीपत के दूसरे युद्ध में हराया था।

8. शेर शाह सूरी की मृत्यु कैसे हुई?

शेर शाह सूरी का मकबरा

नवंबर 1544 ईस्वी में शेरशाह कालिंजर किले (उत्तर प्रदेश में) को जीतने के लिए निकल पड़ा। उस समय कालिंजर का राजा कीरत सिंह था जो कि एक चंदेल राजपूत था। असल में उसने शेरशाह के आदेश के उल्ट ‘रीवा’ के महाराजा वीरभान सिंह बघेला को शरण दे रखी थी जिसकी वजह से शेरशाह कीरत सिंह का दुश्मन हो गया।

शेर शाह ने कालिंजर के किले पर घेरा डाल दिया। 6 महीने तक किले को घेरे रखने के बाद भी सफलता नही मिली जिसकी वजह से उसने किले पर गोला, बारूद चलाने का आदेश दे दिया। कहा जाता है कि, किले की दीवार से टकराकर लौटे एक गोले की वजह से शेरशाह घायल हो गया, जो उसकी मृत्यु की वजह बना। किला तो उसकी सेना ने जीत लिया लेकिन इसकी कीमत उसे अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। यह 22 मई 1545 का दिन था।

शेर शाह सूरी का मकबरा बिहार के सासाराम में स्थित है जिसका निर्माण उसने अपने जीते जी ही शुरू करवा दिया था। इतिहास में अपनी खूबिओं की वजह से अपना नाम दर्ज़ करवाने के बाद वो अब आराम से सो रहा है।

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