कोल्हापुर का युद्ध, जिसमें 3500 मराठों ने 10 हज़ार आदिलशाही फौज़ को हरा दिया था

कोल्हापुर का युद्ध

कोल्हापुर का युद्ध 28 दिसंबर 1659 को मराठा सेनाओं और आदिलशाही फौजों के बीच हुए युद्ध को कहा जाता है। यह युद्ध महाराष्ट्र के शहर कोल्हापुर के पास हुआ था जिसमें शिवाजी के नेतृत्व में मराठों ने आदिलशाही फौजों को करारी हार दी थी।

यह युद्ध शिवाजी की बेहतरीन रणनीति के लिए जाना जाता है, क्योंकि इसमें उन्होंने महज 3500 मराठा सैनिकों के साथ 10 हज़ार की आदिलशाही सेना को हरा दिया था।

कोल्हापुर का युद्ध एक नज़र में-

तिथि – 28 दिसंबर 1659 दिन रविवार
स्थान – कोल्हापुर, महाराष्ट्र
परिणाम – मराठा साम्राज्य की शानदार जीत
प्रतिद्वंदी – मराठा साम्राज्य बनाम आदिलशाही फौज़ें
कमांडर – शिवाजी बनाम रूस्तम ज़मान
सेना की गिणती – 3,500 के मुकाबले 10,000
कितने सैनिक मरे – 1000+ के मुकाबले 7000+

युद्ध की पृष्ठभूमि

कोल्हापुर के युद्ध से 1 महीना 18 दिन पहले 10 नवंबर 1959 को शिवाजी ने बीजापुर की आदिलशाही के सेनापति अफजल खाँ को प्रतापगढ़ के युद्ध में हराकर मार दिया था। उन्होंने इस जीत का फायदा उठाया और बड़ी तेज़ी से पन्हाला के दुर्ग(किले) समेत कई दुर्गों को जीत लिया। बीजापुर ने शिवाजी को रोकने के लिए रूस्तम ख़ान को 10 हज़ार की भारी फौज़ समेत भेजा। 27 दिसंबर 1659 को वो कोल्हापुर के पास पहुँच गया।

युद्ध

आदिलशाही फौज़

रूस्तम ज़मान की सेना में उसकी सहायता करने के लिए फ़जल खान, मलिक इत्बर, सदात खान, याकूब खान, अंकुश खान, हसन खान, मुल्ला याह्या और संताजी घाटगे जैसे सरदार मौजूद थे। रूस्तम ज़मान को आदिलशाही की सबसे ताकतवर सेना के साथ भेजा गया था।

आदिलशाही फौज़ की पहली कतार में हाथियों को खड़ा किया गया था। रूस्तम ज़मान सेना के केंद्र में था जबकि फ़जल ख़ान बाईं ओर, और मलिक इत्बार दाहिनी ओर था। बाकी सरदारों ने अन्य छोर संभाल रखे थे।

मराठा फौज़

शिवाजी की सहायता करने के लिए उनकी सेना में नेताजी पालकर, सरदार गोदाजीराजे, हिरोजी इंगले, भीमाजी वाघ, सिधोजी पवार, जाधवराव, हनमंत्रराव खराटे, पंढारे, सिद्धि हलाल और महादीक जैसे सरदार मौजूद थे।

शिवाज ने केंद्र की कमान स्वयं संभाली थी। सिद्दी हलाल और जाधवराव बाईं और थे। इंगले और सिधोजी पवार दाहिनी और थे। आगे की कमान महादीक और भीमाजी वाघ के पास थी।

सेनाओं का आमना-सामना और लड़ाई

रूस्तम ज़मान पन्हाला दुर्ग की तरफ जाने की योजना बना रहा था। शिवाजी को इस बात की आशंका पहले से थी।

28 दिसंबर 1659 की सुबह जब 10 हज़ार की आदिलशाही फौज मराठा सेनाओं को दिखाई पड़ी तो 3500 मराठों ने बड़ी तेज़ी से हमला कर दिया। आदिलशाही फौजों पर चारों तरफ से हमला किया गया।

एक भयंकर युद्ध के बाद मराठों ने आदिलशाही फौजों को हरा दिया। रूस्तम ज़मान अपने कई सैनिकों समेत दोपहर के समय ही मैदान छोड़ कर भाग गया।

कोल्हापुर के युद्ध में जहां बीजापुर के 7 हज़ार से ज्यादा सैनिक मारे गए, तो वहीं मराठों को केवल 1 हज़ार से कुछ ज्यादा सैनिकों को खोना पड़ा। मराठों के हाथ दुश्मन के 2 हज़ार घोड़े और 12 हाथी लगे।

परिणाम

युद्ध जीतने के साथ ही शिवाजी का एक बड़े इलाके पर अधिकार हो गया और उन्होंने अपने उभरते साम्राज्य का अगला भाग सुरक्षित कर लिया। शिवाजी के नेतृत्व में मराठों ने आदिलशाही के इलाकों को जीतना जारी रखा।

एक और प्रमुख घटना है, जो इस युद्ध के बाद घटी। शिवाजी आदिलशाही के एक किले खेलना को जीतना चाहते थे। लेकिन किले की स्थिती के कारण उसे जीतना आसान नहीं था।

शिवाजी ने खेलना किले को जीतने के लिए एक योज़ना बनाई। जिसके तहत उन्होंने अपने कुछ सरदारों को खेलना किले के किलेदार के पास भेजा कि वो उससे यह कहें कि वो शिवाजी के राज से संतुष्ट नहीं है और आदिलशाही से मिलना चाहते हैं।

किलेदार शिवाजी के सरदारों की बातों में आ गया और अगले ही दिन सरदारों ने किले में अराजकता फैला दी। शिवाजी ने किले के बाहर से हमला कर दिया और कुछ ही समय में किले पर शिवाजी का अधिकार हो गया। शिवाजी ने किले का नाम बदलकर विशालगढ़ रख दिया।


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