यूरोपा हमारे सौर मंडल के 5वें ग्रह बृहस्पति (Jupiter) के 67 उपग्रहों में से चौथा सबसे बड़ा उपग्रह है। यह आकार में हमारी पृथ्वी के चांद से थोड़ा छोटा है।
युरोपा उपग्रह से जुड़े बुनियादी तथ्य
आयु : युरोपा का जन्म लगभग 450 करोड़ साल पहले बृहस्पति के साथ हुआ माना जाता है।
सूर्य से दूरी : युरोपा की सूर्य से औसतन दूरी 78 करोड़ किलोमीटर है। (पृथ्वी की लगभग 15 करोड़ किलोमीटर है।)
बृहस्पति से दुरी : जहां पृथ्वी और इसके चंद्रमां की दूरी 3,84,000 किलोमीटर है तो वहीं युरोपा और बृहस्पति के बीच की दूरी 6,70,900 किलोमीटर है। युरोपा बृहस्पति के ईर्द-गिर्द पृथ्वी के साढ़े तीन दिन के बराबर समय में एक चक्कर लगाता है। बृहस्पति के गिर्द घूमते समय यह अपनी एक साइड ही बृहस्पति की तरफ़ रखता है जैसे कि हमारा चांद अपनी एक साइड ही पृथ्वी की तरफ रखता है।
नामकरण : युरोपा प्राचीन ग्रीक मिथकों में एक राजकुमारी का नाम है जिसका ज़ीउस (Zeus) देवता ने एक सफेद सांड का रूप धारण कर अपहरण कर लिया था। युरोपा ज़ीउस से मीनोस की मां बनी थी। (ज़ीउस देवता को ग्रीक मिथकों वहीं स्थान प्राप्त है, जो हिन्दू मिथकों में इंद्र देवता को।)
यूरोपा (उपग्रह) पृथ्वी से दूरी – यूरोपा और पृथ्वी के बीच की औसत दूरी लगभग 62 करोड़ 83 लाख किलोमीटर है।
युरोपा उपग्रह की खोज़ किसने की थी ?
युरोपा उपग्रह की खोज़ 8 जनवरी 1610 ईसवी को गैलीलियो ने की थी। हालांकि उन्होंने इस उपग्रह की खोज एक दिन पहले यानी कि 7 जनवरी को ही कर ली थी पर इस दिन उनके पास एक कम क्षमता वाली दूरबीन थी जिससे उन्हें युरोपा और बृहस्पति के एक अन्य उपग्रह लो के बीच अंतर ना पता चल सका।
गैलीलियो ने युरोपा समेत बृहस्पति के तीन अन्य उपग्रहों की भी खोज की थी – लो, गेनीमेड और कैलिस्टो (Io, Ganymede, and Callisto)।
गैलीलीयो द्वारा खोज़े गए बृहस्पति के चार उपग्रहों को गैलीलीयन उपग्रह (Galilean moons) कहा जाता है।
युरोपा उपग्रह पर है पृथ्वी से भी ज्यादा पानी !
युरोपा उपग्रह इसलिए ख़ास है क्योंकि सभी वैज्ञानिक यह मानते है कि युरोपा पर एक विशाल पानी का समुद्र है जिसकी गहराई 100 किलोमीटर से भी ज्यादा हो सकती है। ऐसा मानने के कई कारण है –
1. पहला तो युरोपा की सतह एक दम चिकनी लगती है और यह पृथ्वी पर बर्फ के समुद्र जैसी दिखती है। वैज्ञानिक मानते है कि युरोपा की ऊपरी सतह बर्फ़ से बनी है और इसके नीचे एक विशाल समुद्र है। ( क्योंकि युरोपा पर तापमान बहुत कम है शायद इसलिए ऊपर रहने वाला पानी जम जाता है।)
2. युरोपा की प्रकाश को परिवर्तित करने की क्षमता (light reflectivity) 0.64 है जो कि पूरे सौर मंडल के सभी उपग्रहों में सबसे ज्यादा में से एक है। प्रकाश को परिवर्तित करने की इतनी क्षमता पानी के कारण ही हो सकती है।
3. युरोपा पर बहुत ज्यादा दरारें (cracks) है जिनमें बर्फ़ भरी हुई लगती है। वैज्ञानिक मानते है कि जब युरोपा घूमते-घूमते बृहस्पति के नजदीक आता है तो ज्वारी शक्ति (tidal forces) के कारण उसका पानी ऊपर उठता है, क्योंकि युरोपा की सतह जमी हुई बर्फ है इसलिए वो ऊपर उठ जाती है जो दूर से देखने पर एक दरार नज़र आती है।
4. युरोपा पर गड्ढे (क्रेटर) बेहद कम पाए गए है, जो इस बात का संकेत है युरोपा की सतह क्रियाशील है। दरासल लगभग सभी चट्टानी पिंडो पर उल्का आदि गिरने से बड़े – बड़े गड्ढे बन जाते है जिन्हें क्रेटर कहा जाता है। पर युरोपा पर गड्ढे इसलिए नहीं बने है क्योंकि जब कोई उल्का उस पर गिरता है तो वो बर्फ की सतह को तोड़ कर नीचे चला जाता है और फिर नीचे का कम तापमान वाला पानी ऊपर आकर फिर से जम जाता है।
5. बृहस्पति पर भेजे गए गैलीलियो यान ने यह पता लगाया है कि युरोपा का एक कमजोर चुम्बकीय क्षेत्र (magnetic field) है जो लगातार बदलता रहता है। यह इस बात का प्रमाण है कि युरोपा की सतह के निचे सुचालक पदार्थ मौजूद है – शायद नमकीन पानी का सागर।
6. साल 2013 में हब्बल दूरबीन द्वारा युरोपा के दक्षिणी ध्रुव पर पानी के फुफ्हारे जैसी चीज देखी गई जो शायद पानी ही थी।
इन सब बातों के मद्देनजर अब वैज्ञानिकों को पूरा यकीन है कि युरोपा पर एक विशाल पानी का समुद्र है जिसके नीचे चट्टानों की कठोर सतह है तो वहीं ऊपर जमी हुई बर्फ की परत।
पृथ्वी और युरोपा के जल की तुलना

ऊपर दिए चित्र के दाहिने भाग में पृथ्वी है, और उस पर नीला गोला पृथ्वी पर पानी की कुल मात्रा दर्शा रहा है। पृथ्वी की तीन चौथाई सतह पर पानी है लेकिन इसकी गहराई पृथ्वी की त्रिज्या(radius) की तुलना मे कुछ भी नही है। पृथ्वी के संपूर्ण पानी से बनी गेंद की त्रिज्या लगभग 700 किमी होगी।
चित्र में बायीं ओर युरोपा और उसपर पानी की मात्रा दिखायी गयी है। युरोपा मे पानी की मात्रा पृथ्वी पर पानी की मात्रा से भी ज्यादा है। युरोपा पर पानी उसकी सतह के नीचे लगभग 80-100 किमी की गहराई तक है। युरोपा के पानी से बनी गेंद का व्यास 877 किमी होगा।
युरोपा पर हो सकता है जीवन
उपग्रह पर पानी होने के कारण कई वैज्ञानिकों को आस है कि युरोपा पर पानी के अंदर जीवन हो सकता है। अगर जीव ना हों तो शायद वनस्पति जरूर हो सकती है।
युरोपा पृथ्वी की तरह ही हाइड्रोजन के मुकाबले दस गुना ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करता है, जो इस पर जीवन की संभावना होने की आस को बढ़ा देता है।
युरोपा पर जल और जीवन की खोज के लिए कई अभियान भेजने के प्रस्ताव हैं। एक ऐसा भी प्रस्ताव है के एक यान को यूरोपा पर उतारा जाए। इस यान में परमाणु शक्ति से गर्मी पैदा करने वाला एक भाग होगा जो सतह की बर्फ़ को पिघलाकर युरोपा में तब तक धंसता चला जाएगा जब तक के वह या तो समुद्र में प्रवेश कर ले या फिर यह साबित कर दे के ऐसा कोई समुद्र है ही नहीं। क्योंकि वैज्ञानिक मानते हैं के ऊपर बर्फ की सतह 10 किमी से अधिक मोटी है इसलिए इस यान को समुद्र तक पहुँचने के लिए बहुत गहराई तक धंसना होगा।

ऐसे यान के लिए यह भी जरूरी है कि वो उसमे इतनी शक्ति हो कि वो पृथ्वी तक सिग्नल भेज सके और प्राप्त कर सके। इसके सिवा यह यान स्वयं ही अपनी दिशा चुन सके क्योंकि पृथ्वी से उस तक सिग्नल पहुँचने में कुछ मिनट लगेंगे।
अन्य जानकारियां
युरोपा का वायुमंडल
यूरोपा का एक बहुत ही पतला वायुमंडल है जिसमें अधिकतर आणविक ऑक्सीजन मौजूद है। इस वायु की तादाद इतनी कम है के पृथ्वी पर वायु का दबाव यूरोपा से दस खरब गुना ज्यादा है।
विकिरण
यूरोपा की सतह पर बृहस्पति के विकिरण (रेडिएशन) का प्रभाव काफ़ी है। हर रोज़ सतह पर औसतन 540 रॅम (rem) का विकिरण पड़ता है। अगर किसी मनुष्य को इन हालात में रहना पड़े तो उसको जानलेवा विकिरण रोग का हो जाना निश्चित है।
प्लेट टेक्टोनिक्स
साल 2014 में वैज्ञानिकों ने पाया कि युरोपा पर भी पृथ्वी की तरह ही plate tectonics व्यवस्था है। अभी तक केवल पृथ्वी ही थी जिस पर ऐसी व्यवस्था पाई गई है, प्लेट टेक्टोनिक्स व्यवस्था ने पृथ्वी पर जीवन के फलने फूलने में बहुत सहायता की है।
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