अलाउद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत के खिलजी वंश का दूसरा सुल्तान था। अलाउद्दीन खिलजी का जन्म सन 1250 में पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले में हुआ था। सन 1296 में 46 साल की उम्र में वो सुल्तान बना और लगभग 20 साल राज करने के बाद 1316 में उसकी मौत हो गई। उसने अपने शासन काल में भारत के बड़े हिस्से को जीत लिया था और उसके जितना बड़ा साम्राज्य अगले 300 सालो तक कोई भी राजा जा सुल्तान खड़ा नही कर पाया था।
अलाउद्दीन खिलज़ी अपने चाचा / ससुर की हत्या करवा कर बना था सुल्तान
अलाउद्दीन खिलज़ी का वास्तवाकि नाम जूना मुहम्मद खिलजी था। जूना मुहम्मद से पहले जलालुद्दीन खिलजी दिल्ली का सुल्तान था जो कि रिश्ते में जूना मुहम्मद का चाचा और सुसुर लगता था। जलालुद्दीन ने जूना मुहम्मद का पालन पोषण अपने बेटे की तरह किया था और अपनी बेटी का निकाह भी उससे करवाया था। पर बदले में जूना मुहम्मद ने जलालुद्दीन को धोखा ही दिया।
22 अक्टूबर 1296 के दिन अलाउद्दीन खिलज़ी ने अपने चाचा जलालुद्दीन से गले मिलते समय उसकी हत्या अपने दो सैनिकों मुहम्मद सलीम तथा इख़्तियारुद्दीन हूद से करवा दी और खुद को सुल्तान घोषित कर दिया। उसने जलालुद्दीन खिलजी के वफ़ादार सरदारों को खरीद लिया जा कत्ल कर दिया।
अलाउद्दीन खिलज़ी का साम्राज्य विस्तार
अलाउद्दीन खिलजी ने दिल्ली की गद्दी पर बैठते ही अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार करना शुरू कर दिया। अलाउद्दीन खिलज़ी बहुत ही महत्वकांक्षी राजा था और वो अपने आप को दूसरा सिकंदर कहता था। उसने ‘सिकंदर – ए- सानी‘ की उपाधि भी ग्रहण की।
उत्तर भारत में साम्राज्य विस्तार
अलाउद्दीन खिलज़ी के नियंत्रण में लगभग समूचा उत्तर भारत था। उत्तर – पश्चिम में खिलज़ी साम्राज्य पंजाब और सिंद नदी तक और मध्य में गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, मालवा और राजपुताना क्षेत्र तक फैला था।
गुजरात विजय
1298 ईसवी में अलाउद्दीन ने नुसरत ख़ाँ की अगवाई में 14 हज़ार घोड़सवारों और 20 हज़ार पैदल सैनिकों को गुजराज विजय के लिए भेजा। अहमदाबाद के पास बघेल राजा कर्ण और खिलज़ी सेना में युद्ध हुआ और राजा कर्ण पराजित होकर अपनी पुत्री देवल देवी के साथ भाग कर देवगिरि के शासक रामचन्द्र देव की शरण में पहुँच गया। राजा कर्ण की पत्नी कमला देवी को अलाउद्दीन खिलज़ी के पास भेज दिया गया, अलाउद्दीन खिलज़ी ने कमला देवी का जर्बन धर्म परिवर्तन करवाया और उससे निकाह कर शाही हरम में भेज दिया।
गुजरात के विजयी अभियान के समय नुसरत ख़ाँ ने भयंकर कत्लेआम मचाया तथा कई बड़े मंदिरों को तोड़ दिया था। इनमें से गुजरात का सोमनाथ मंदिर सबसे प्रमुख है।
नुसरत ख़ाँ ने बीस हजार हिंदु युवतियों को और अनगिनत अल्पायु लड़के-लड़कियों को गुलाम बना लिया था। सोमनाथ मंदिर की मूर्तियों को तोड़ कर मस्जिदों की सीढ़ीयों पर बिछा दिया गया।
अलाउद्दीन खिलजी का मेवाड़ आक्रमण और रानी पद्मावती का जौहर
जनवरी 1303 को अलाउद्दीन खिलज़ी ने एक बड़ी सेना लेकर मेवाड़ पर हमला किया। मेवाड़ के राजा राणा रतन सिंह थे, जिनकी राजधानी चित्तौड़ थी। चित्तौड़ का किला सामरिक महत्व रखता था इसलिए यह अलाउद्दीन की निगाह में चढ़ा हुआ था।
खिलज़ी और मेवाड़ की सेना में भयंकर युद्ध चला जिसमें राजा रतन सिंह शहीद हो गए। 28 जनवरी 1303 ईसवी को खिजजी का चित्तौड़ के किले पर कब्ज़ा हो गया।
राजा रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मावती ने 16 हज़ार राजपुतानियों के साथ जौहर की आग में प्रवेश करके अपने आपको दुश्मनों की हवस का शिकार बनने से बचाया। खिलजी सेना ने चित्तौड़ की लगभग 30 हज़ार हिंदु जनता को कत्ल करवा दिया।
उत्तर भारत की अन्य जीतें
उत्तर भारत में खिजली सेना ने 1299 ईसवी में जैसलमेर पर जीत हासिल की तो वहीं 1301 ईसवी में रणथम्भौर को, 1305-1308 ईसवी में मालवा को और 1304 में जालौर को फतह़ किया।
1311 ई. तक उत्तर भारत में सिर्फ़ नेपाल, कश्मीर एवं असम ही ऐसे भाग बचे थे, जिन पर अलाउद्दीन अधिकार नहीं कर सका था। उत्तर भारत की विजय के बाद अलाउद्दीन ने दक्षिण भारत की ओर अपना रुख किया।
दक्षिण भारत में खिलज़ी का साम्राज्य विस्तार
अलाउद्दीन की दक्षिण विजय का मुख्य श्रेय मलिक काफ़ूर को ही जाता है। मलिक काफ़ूर ने ही दक्षिण भारत के सभी विजयी अभियानों की अगवाई की थी।
1306 ईसवी में अलाउद्दीन खिलज़ी ने मलिक काफ़ूर के नेतृत्व में एक बड़ी सेना को देवगिरि (आज के महाराष्ट्र का दौलताबाद) के राजा रामचन्द्र देव पर आक्रमण करने के लिए भेजा। भयंकर युद्ध के बाद राजा रामचन्द्र ने आत्मसमपर्ण कर दिया।
1310 ईसवी में मलिक काफ़ूर तेलंगाना राज्य के वारंगल पहुँचा तो वहां के राजा रुद्रदेव ने अपनी सोने की मूर्ति बनवाकर गले में एक सोने की जंजीर डालकर आत्मसमर्पण स्वरूप मलिक काफ़ूर के पास भेजा, साथ ही 100 हाथी, 700 घोड़े, अपार धन राशि एवं वार्षिक कर देने के वायदे के साथ अलाउद्दीन ख़िलजी की अधीनता स्वीकार कर ली।
वारंगल के बाद 1311 ईसवी में मलिक काफ़ूर के कर्नाटक के होयसल शासक वीर बल्लाल तृतीय को आत्मसमर्पण करने पर मज़ूबर किया।
मलिक काफ़ूर ने दक्षिण भारत के बड़े हिस्से को जीत लिया और भयंकर कत्लेआम अथवा लूट-पाट की। उसने रामेश्वरम के प्रसिद्ध मंदिर समेत कई मंदिरों को भी तुड़वा दिया तथा मस्जिदें बनवाई।
अलाउद्दीन खिजली की मंगोलों से टक्कर
अलाउद्दीन के समय मंगोल संसार का सबसे बड़ा साम्राज्य था जो भारत को छोड़ समस्त ऐशिया तथा युरोप के कुछ हिस्सों में फैला हुआ था। मंगोलों ने खिलजी के समय भारत पर कई बार आक्रमण किया पर वो सफ़ल नही हो पाए। खिलजी ने मंगोलों को जालंधर (1298), किली (1299) और रावी नदी पर हुए युद्धों में हराया था।
मलिक काफ़ूर कौन था और उसका अलाउद्दीन खिलज़ी से संबंध
मलिक काफ़ूर एक किन्नर (हिजड़ा) था जिसे गुजरात अभियान के समय नुसरत खाँ ने एक हज़ार दिनार में ख्रीद कर अलाउद्दीन खिलज़ी की सेवा में भेजा। जब काफ़ूर खिलजी के सामने आया तो खिजली काफ़ूर की कमनीयता को देखकर उसे दिल दे बैठा। काफ़ूर पहले हिंदु था पर अलाउद्दीन ने उसका धर्म परिवर्तन करवा कर उसे मुसलमान बना दिया था।
सभी इतिहासकार इस बात पर सहमत है कि खिज़ली और मलिक काफ़ूर के बीच सेक्स संबंध थे। जियाउद्दीन बरनी के अनुसार काफूर से खिलजी को इतना प्यार था कि उसने उसे अपने शासन में दूसरा सबसे अहम ओहदा (मलिक नायब) दिया था।
मालिक काफूर ने खिलजी की तरफ़ से कई युद्धों में हिस्सा लिया था, तथा दक्षिण भारत की जीत का श्रेय तो उसे ही जाता है।
लेकिन मालिक काफ़ूर ने खिलजी के प्यार के बदले उसको केवल धोखा ही दिया था।
अलाउद्दीन खिलजी की मौत
अपने शासन के आखरी चार – पांच सालो में अलाउद्दीन खिलजी की याद्दाश्य और सूझबूझ कमज़ोर हो गई थी। इन सालों में शासन की पूरी कमान मलिक काफूर के हाथों में आ गयी थी।
कहा जाता है कि मालिक काफ़ूर ने एक दिन अलाउद्दीन खिलज़ी की हत्या करवा दी। इस बात की पुष्टि इस तथ्य से भी हो जाती है कि मालिक काफ़ूर ने खिलजी के मरने के बाद उसके दो बेटों को अंधा करवा दिया तथा खिलजी के तीन साल के पुत्र शहाबुद्दीन को गद्दी पर बैठाकर खुद शासन करने लगा। पर खिलजी की हत्या के कुछ हफ्ते बाद ही मालिक काफ़ूर की भी हत्या कर दी गई थी।
अलाउद्दीन खिलजी के छोटे बेटे शहाबुद्दीन को उनके तीसरे बेटे मुबारक शाह ने गद्दी से उतार दिया था और 1316 से 1320 AD तक शासन किया। मुबारक शाह की हत्या के बाद खिलजी वंश का अंत हो गया और तुगलंक वंश का काल आरंभ हुआ।
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